यह फागू ''मोहड़'' (मठ से अपभ्रंश) का मन्दिर है। यह स्थान चूड़ धार जैसा
ही तीर्थ स्थल है। हालांकि यहाँ महाभारत काल के मन्दिर अवशेष विद्यमान हैं
परन्तु अब यह शिवालय मन्दिर है। यहाँ शिवलिंग स्थापित हैं जो शिरगुल महाराज
के पिता भूखडू महाराज की तपस्थली होने का आभास करवाता है। यहाँ थान देवता
के होने की भी मौखिक मौजूदगी है। देव यात्रा से पहले शिरगुल महाराज यहाँ
जरुर आते हैं। दोनों देवता भाई शिरगुल एवं दधेश्वर यहीं आकर मिलते हैं।
यहांके आसपास की सैंकड़ों बीघा जमीन इनकी ठकुराई के तहत आती थी। सारा बचपन
दोनों देवताओं का यहीं बीता है।
लेकिन आजकल जीर्ण शीर्ण अवस्था में पडा है।
लेकिन आजकल जीर्ण शीर्ण अवस्था में पडा है।
No comments:
Post a Comment