आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है।
यदि इन को कोई पहचान पाएगा, तो उसकी उम्र चालीस वर्ष तो होगी ही।
पहाडों पर कभी दो ही फसलें सर्दी और बरसात की होती थी। जमा किया अनाज जल्दी समाप्त हो जाता था और अगली फसल में देर होती थी तो ऐसे में पेट भरने के विकल्प तलाशे जाते थे, उनमें से एक यह रोटियां भी विकल्प था। मक्की की फसल में भले ही महीना और लगेगा मगर गरीब लोग, कच्ची मक्कियां तोडकर दाने निकाल कर, सिल बट्टे पर पीस कर, नमक मिर्च मिला कर, सिडकु की तरह उबाल कर, घी, दही, नहीं तो मांग कर लाईगई लस्सी के साथ खा जाते थे। साधन सम्पन्न लोग इसे जायेकादार बना कर वेराइटी के तौर पर खाते थे।
क्षेत्र में इन्हें पचौले अथवा डौणे कहते हैं।
अब न मक्की रही न पचौले।
साभार शेर जंग चोहान
यदि इन को कोई पहचान पाएगा, तो उसकी उम्र चालीस वर्ष तो होगी ही।
पहाडों पर कभी दो ही फसलें सर्दी और बरसात की होती थी। जमा किया अनाज जल्दी समाप्त हो जाता था और अगली फसल में देर होती थी तो ऐसे में पेट भरने के विकल्प तलाशे जाते थे, उनमें से एक यह रोटियां भी विकल्प था। मक्की की फसल में भले ही महीना और लगेगा मगर गरीब लोग, कच्ची मक्कियां तोडकर दाने निकाल कर, सिल बट्टे पर पीस कर, नमक मिर्च मिला कर, सिडकु की तरह उबाल कर, घी, दही, नहीं तो मांग कर लाईगई लस्सी के साथ खा जाते थे। साधन सम्पन्न लोग इसे जायेकादार बना कर वेराइटी के तौर पर खाते थे।
क्षेत्र में इन्हें पचौले अथवा डौणे कहते हैं।
अब न मक्की रही न पचौले।
साभार शेर जंग चोहान
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