बैशाख की सक्रान्ति

देव भूमि हिमाचल प्रदेश में वर्ष भर देवी-देवताओं के नाम पर असंख्य मेले एंव उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिसमें संबन्धित क्षेत्र के लोगो की अगाध श्रद्वा व आस्था जुडी होती है। धार्मिक मेलो की श्रृखंला में
कालान्तर से राजगढ़ में भी इस क्षेत्र के पीठासीन देवता ῾शिरगुल̕ के नाम पर बैशाख की सक्रान्ति के पावन पर्व पर मेले का आयोजन किया जाता है । राजगढ़ का बैशाखी मेला प्रदेश के प्रसिद् व् प्राचीन मेलों में से एक है। बैशाख मास की संक्रान्ति को इसका आयोजन होने से इसका नाम बैशाखी मेला पडा है जबकि पंजाब में मनाए जाने वाले बैशाखी पर्व से इस मेले का कोई सरोकार नहीं है । हिमाचल प्रदेश के कुछ जिला में वर्ष की चार ῾̕बड़ी साजी̕ में देवी देवताओं की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है जिनमें बैशाख संक्रान्ति जिसे स्थानीय भाषा में ῾बीशू की साजी̕ कहा जाता है भी एक है । राजगढ़ शहर के अस्तित्व में आने से पहले यह मेला ῾सरोट के टिब्बे̕ पर मनाया जाता था। इस टिब्बे पर ῾शिरगुल देवता̕ का छोटा सा मंदिर हुआ करता
था जिसे शहर के अस्तित्व में आने के उपरान्त राजगढ़ मे स्थानान्तरित किया गया था। कालान्तर से ही राजगढ़ मेला पूरे क्षेत्र के लोगो के लिए मनोरंजन  का एक मात्र साधन हुआ करता था। लोग सरोट के टिब्बे पर ῾शिरगुल मंदिर̕में नमन करने के साथ मेले का भी भरपूर आन्नद उठाते थे। लोगो का विश्वास आज भी कायम है कि शिरगुल देवता के मेले के आयोजन से समूचे क्षेत्र में शिरगुल देवता की अपार कृपा से क्षेत्र में खुशहाली और समृद्धि का सूत्रपात होता है। शिरगुल को भगवान शिव का अंशावतार माना जाता है और सिरमौर तथा जिला शिमला के अतिरिक्त पडोसी राज्य उत्तराखण्ड के जोनसार बाबर में शिरगुल की कुल देवता के नाम से अराधना की जाती है | शिरगुल को एक वीर योद्धा के रूप् में भी माना जाता है जिन्होने दिल्ली के मुगल शासक
की सेनाओं के दांत खटटे किए थे। शिरगुल देवता का इतिहास माता भंगयाणी देवी हरिपुरधार के साथ भी जुड़ा है। मेले की प्राचीन गरिमा बनाए रखने और इसे आकर्षक व मनोरंजक बनाने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा इसे῾जिला स्तरीय बैशाखी मेले̕ का दर्जा दिया गया है। हर वर्ष यह मेला बैशाख मास की संक्रान्ति से आरंभ होकर तीन दिन तक चलता है। मेले का शुभारंभ राजगढ़ शहर में स्थित शिरगुल देवता की पारम्परिक पूजा
से होता है। गत कुछ वर्षो से मेले के पहले दिन शहर में शिरगुल देवता की पालकी पारम्परिक वाद्य यंत्रों के साथ पूरे शहर में निकाली जाती है ताकि मेले में आए सभी लोग शिरगुल देवता का आशिर्वाद प्राप्त कर सके। इस वर्ष यह मेला 13 से 15 अप्रैल तक राजगढ़ के नेहरू ग्राऊंड में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मेले को आकर्षक बनाने के लिए मेला समिति द्वारा सांस्कृतिक संध्याओं में प्रदेश के प्रसिद्ध लोक कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। मेले के अंतिम दिन 15 अप्रैल को विशाल दंगल होगा जिसमें उत्तरी भारत के नामी पहलवान भाग लेंगें

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