( लेखक की फेसबुक से साभार )
हिमाचल प्रदेश देव संस्कृति की भूमी रही है| हिमाचल के हर गाँव में हमें
एक इष्ट देव/देवी या फिर कोई न कोई महापुरुष मिल जाते हैं जिनका उस गाँव
विशेष पर अपना खास प्रभाव रहता है| कोई ऐसा कोना हिमाचल में नहीं मिलेगा
जहाँ का कोई दैवीय सन्दर्भ न हो या कोई ऐसा स्थान नहीं मिलेगा जिसका
सम्बन्ध किसी ऋषि मुनि या महापुरुष से न हो| आज हम हिमाचल के एक ऐसे ही
पवित्र दैवीय तीर्थ स्थल से आप सब का साक्षात्कार करवाने जा रहे हैं जिसमें
प्रकृति ने अपनी हर छटा डाली है| यहाँ का सम्बन्ध है देवों के देव महादेव
भुर्शिंग महादेव जी से|
स्थिति :
तो आइये ले चलते हैं आपको भुर्शिंग महादेव या भुरेश्वर महादेव की देवस्थली की पवित्र यात्रा पर| इसमें आपको बतायेंगे इस देवस्थली का इतिहास इससे जुड़ी रोचक व हैरतअंगेज बातें| हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में नाहन-शिमला राजकीय उच्च मार्ग पर नैना टिक्कर नामक स्थान से मात्र चार किलोमीटर की दुरी पर स्थित पजेली गावं में ही विराजमान हैं भुर्शिंग महादेव की तपोस्थली| क्वाग्धार की पहाड़ियों में समुद्र तल से लगभग 65000 फुट की ऊँचाई पर भुर्शिंग महादेव जी का भव्य एवं विशाल मन्दिर स्थित है| यहाँ से सब कुछ नीचे ही दिखता है और लगता है मानो आप सबसे ऊपर अपने प्रिय महादेव की शरण में बैठे हों| यहाँ पर जाकर ध्यान दुनिया भर की भागदौड़ से हट कर अपने आप पर और चारों ओर की प्रकृतिक सुन्दरता पर चला जाता है| वास्तव में भगवान शिव का यह भव्य मन्दिर एक बहुत ही रमणीक स्थान पर स्थित है यह से एक और चुड़धार की पर्वत श्रृंखला नजर आती है तो वहीं शिमला की पहाड़ियाँ भी नजर आती हैं|
तो आइये ले चलते हैं आपको भुर्शिंग महादेव या भुरेश्वर महादेव की देवस्थली की पवित्र यात्रा पर| इसमें आपको बतायेंगे इस देवस्थली का इतिहास इससे जुड़ी रोचक व हैरतअंगेज बातें| हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में नाहन-शिमला राजकीय उच्च मार्ग पर नैना टिक्कर नामक स्थान से मात्र चार किलोमीटर की दुरी पर स्थित पजेली गावं में ही विराजमान हैं भुर्शिंग महादेव की तपोस्थली| क्वाग्धार की पहाड़ियों में समुद्र तल से लगभग 65000 फुट की ऊँचाई पर भुर्शिंग महादेव जी का भव्य एवं विशाल मन्दिर स्थित है| यहाँ से सब कुछ नीचे ही दिखता है और लगता है मानो आप सबसे ऊपर अपने प्रिय महादेव की शरण में बैठे हों| यहाँ पर जाकर ध्यान दुनिया भर की भागदौड़ से हट कर अपने आप पर और चारों ओर की प्रकृतिक सुन्दरता पर चला जाता है| वास्तव में भगवान शिव का यह भव्य मन्दिर एक बहुत ही रमणीक स्थान पर स्थित है यह से एक और चुड़धार की पर्वत श्रृंखला नजर आती है तो वहीं शिमला की पहाड़ियाँ भी नजर आती हैं|
प्राकृतिक जीवों की शरण स्थली:
यह मन्दिर न केवल आस्था का स्रोत है बल्कि बहुत से वन्य जीवों के लिए एक शरण स्थली भी है मन्दिर के निचे की बड़ी बड़ी चट्टानों में प्रक्रति के प्रहरी कहे जाने वाले गिद्धों को वास है जिन्हें आकाश में विचरण करते हुए सरलता से देखा जा सकता है| उनकी उड़ान निर्भीक और आकर्षक लगती है मानो की अपनी धुन में मस्त हो बस उड़े जा रहे हों| इसके अतिरिक्त यह भी सुनने में आया की सामने मन्दिर के नीचे नजर आने वाले जंगल बहुत से जंगली जीव शाम के समय विचरण करते हैं जैसे शेर भालू इत्यादि| और कई बार तो उनकी दहाड़ और गर्जना भी साफ सुनाई दे जाती है साथ ही में कभी कभी तो विचरण करते हुए उन्हें देखा भी गया है| इसके चरों और दूर दूर तक नजर दौडाएं तो कुछ चट्टाने दिखती हैं इनमें गौर से देखेने पर आपको कोई न कोई आकृति अवश्य ही दिखाई देती है जो की प्रकृति का ही एक और करिश्मा है|
यह मन्दिर न केवल आस्था का स्रोत है बल्कि बहुत से वन्य जीवों के लिए एक शरण स्थली भी है मन्दिर के निचे की बड़ी बड़ी चट्टानों में प्रक्रति के प्रहरी कहे जाने वाले गिद्धों को वास है जिन्हें आकाश में विचरण करते हुए सरलता से देखा जा सकता है| उनकी उड़ान निर्भीक और आकर्षक लगती है मानो की अपनी धुन में मस्त हो बस उड़े जा रहे हों| इसके अतिरिक्त यह भी सुनने में आया की सामने मन्दिर के नीचे नजर आने वाले जंगल बहुत से जंगली जीव शाम के समय विचरण करते हैं जैसे शेर भालू इत्यादि| और कई बार तो उनकी दहाड़ और गर्जना भी साफ सुनाई दे जाती है साथ ही में कभी कभी तो विचरण करते हुए उन्हें देखा भी गया है| इसके चरों और दूर दूर तक नजर दौडाएं तो कुछ चट्टाने दिखती हैं इनमें गौर से देखेने पर आपको कोई न कोई आकृति अवश्य ही दिखाई देती है जो की प्रकृति का ही एक और करिश्मा है|
मन्दिर:
महादेव का मन्दिर बड़ा ही आकर्षक और सुंदर है| जैसे ही गेट खोलते हैं तो कुछ सीढीयों को चढने के पश्चात
आप प्रवेश द्वारा तक पहुच जायेंगे| सीढीयों पर
कुछ सुंदर वाक्य उकेरे हुए हैं| बहार हिमाचल के पारम्परिक वाद्य यंत्र
नगाड़े रखे होते हैं| मन्दिर के गर्भ गृह में एक प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित
है जो स्म्भ्तः बहुत प्राचीन है| इसके साथ ही शिव और पार्वती की प्रतिमाएं
भी वहन देखने को मिलती हैं| मन्दिर का दान पात्र भी काफी रोचक है एसा माना
जाता है की काफी समय पहले इसमें डाला जाने वाला दान सीधे निचे स्थित गावं
तक चला जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है| मन्दिर परिसर में सी. सी. टी.
वी. कैमरे लगे हुए हैं| महादेव का मन्दिर बड़ा ही आकर्षक और सुंदर है| जैसे ही गेट खोलते हैं तो कुछ सीढीयों को चढने के पश्चात
जन श्रुति:
एक जन श्रुति के अनुसार इस स्थान का नाम भू + लिंग या भू + ईश्वर था लेकिन समय बीतने के साथ साथ यह भुर्शिंग या भुरेश्वर में तबदील हो गया| द्वापर युग में महाभारत के युद्ध को भगवान शिव और माता पार्वती ने यहीं इसी पहाड़ी पर से बैठ कर देखा था, ऐसा माना जाता है कि तभी से यहाँ पहाड़ी पर शिवलिंग की उत्पति है| यहाँ से मौसम साफ हो आज भी पिंजोर चंडीगढ़, अम्बाला का मैदानी इलाका नजर आता है|
एक जन श्रुति के अनुसार इस स्थान का नाम भू + लिंग या भू + ईश्वर था लेकिन समय बीतने के साथ साथ यह भुर्शिंग या भुरेश्वर में तबदील हो गया| द्वापर युग में महाभारत के युद्ध को भगवान शिव और माता पार्वती ने यहीं इसी पहाड़ी पर से बैठ कर देखा था, ऐसा माना जाता है कि तभी से यहाँ पहाड़ी पर शिवलिंग की उत्पति है| यहाँ से मौसम साफ हो आज भी पिंजोर चंडीगढ़, अम्बाला का मैदानी इलाका नजर आता है|
भाई और बहन की मार्मिक कहानी:
यहाँ अगर इस स्थान जुड़ी एक भाई और बहन (जिनके नाम अज्ञात हैं) की मार्मिक कहानी का जिक्र न किया गया तो सारी कहानी अधूरी रह जाएगी| इन दोनों भाई बहन की सगी माता नहीं थी और सौतेली माता इनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी| बचपन में खेलने कूदने की जगह इन्हें पशुओं को चराने के लिए भेज दिया जाता लेकिन बालपन की प्रवृति तो खलने की होती ही है| बच्चे पहाड़ी पर पशुओं को भी चराते और साथ ही शिवलिंग के आस पास खेलते कूदते थे| बच्चे प्रतिदिन वहाँ जाया करते और शिवलिंग के पास अपना समय बिताते देखते ही देखते वे शिव भक्त बन गये और भगवान शिव ने भी इनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हो कर इन्हें न केवल अपने चरणों में स्थान दिया बल्कि उन्हें अपना गण बनाया इस प्रकार दोनों भाई और बहन के पास दैवीय शक्ति भी आ गयी| लेकिन आम जनों के लिए तो अभी भी वो केवल एक अबोध बालक ही थे| एक दिन भयंकर बरसात और तूफान के चलते बच्चे एक बछड़ा कही भूल आये| इस पर उनकी सौतेली माता ने उन्हें उसी तूफान और बारिश में घर से निकाल दिया और खोये हुए बछड़े को ढूंढने का फरमान सुना दिया| दोनों भाई बहन दर दर की ठोकरे खाते हुए बछड़े को खोजने लगे फिर वो उस शिखर पर जा पहुंचे जहाँ शिवलिंग के पास शीत प्रकोप से और देवयोग से वो बछड़ा निश्चल हो गया था| भाई ने अपनी भं को घर भज दिया और स्वयं वहीं रह गया| अगले सुबह जैसे ही बहन अपने पिता के साथ वहां पहुंची उस बछड़े के साथ ही उसका भाई ही निश्चल हो चूका था देखते ही देखते वो दोनों ही अंतर्ध्यान हो गये| जैसे तैसे समय बीतता गया बहन सौतेली माँ के अत्याचार को किसी तरह सहते हुए बड़ी हुई|
फिर एक दिन एक बाहुबली काना क्ढोह (जो की एक आँख से अँधा था) के साथ उसकी शादी उसकी माँ ने जबरन तय कर दी| बहन शादी के लिए तैयार नहीं थी लेकिन भाई ने किसी तरह बहन को मनाया| भाई की काना क्ढोह से शर्त लगी लेकिन भाई उस शर्त को हार गया| अब काना बारात लेकर शिखर पर आ पहुंचा| लेकिन वो दुल्हन तो क्या उसकी काँया तक को साथ नहीं ले जा पाया चूँकि बहन ने एक किलोमीटर गावं कथाड़ की तरफ जाते हुए हुए ही एक 50 बीघे चौड़े खेत भ्युन्त्ल से डोली से ही छलांग लगा दी| अपनी दैवीय शक्ति से वो छलांग लगाते ही आधा मैदान अपने साथ घिन्नी घाड़ की तरफ गिरते हुए निचे चली गयी और एक किलोमीटर के बाद अंतर्ध्यान हो गयी और एक बान के वृक्ष के निचे भाभड़ घास और एक जलधारा के रूप में प्रकट हो गयी| यह जल धारा देवी नदी के रूप में विख्यात हो कर कई लोगों की प्यास बुझाते हुए हरियाणा में प्रवेश करती है|
यहाँ अगर इस स्थान जुड़ी एक भाई और बहन (जिनके नाम अज्ञात हैं) की मार्मिक कहानी का जिक्र न किया गया तो सारी कहानी अधूरी रह जाएगी| इन दोनों भाई बहन की सगी माता नहीं थी और सौतेली माता इनके साथ बहुत बुरा बर्ताव करती थी| बचपन में खेलने कूदने की जगह इन्हें पशुओं को चराने के लिए भेज दिया जाता लेकिन बालपन की प्रवृति तो खलने की होती ही है| बच्चे पहाड़ी पर पशुओं को भी चराते और साथ ही शिवलिंग के आस पास खेलते कूदते थे| बच्चे प्रतिदिन वहाँ जाया करते और शिवलिंग के पास अपना समय बिताते देखते ही देखते वे शिव भक्त बन गये और भगवान शिव ने भी इनकी सच्ची भक्ति से प्रसन्न हो कर इन्हें न केवल अपने चरणों में स्थान दिया बल्कि उन्हें अपना गण बनाया इस प्रकार दोनों भाई और बहन के पास दैवीय शक्ति भी आ गयी| लेकिन आम जनों के लिए तो अभी भी वो केवल एक अबोध बालक ही थे| एक दिन भयंकर बरसात और तूफान के चलते बच्चे एक बछड़ा कही भूल आये| इस पर उनकी सौतेली माता ने उन्हें उसी तूफान और बारिश में घर से निकाल दिया और खोये हुए बछड़े को ढूंढने का फरमान सुना दिया| दोनों भाई बहन दर दर की ठोकरे खाते हुए बछड़े को खोजने लगे फिर वो उस शिखर पर जा पहुंचे जहाँ शिवलिंग के पास शीत प्रकोप से और देवयोग से वो बछड़ा निश्चल हो गया था| भाई ने अपनी भं को घर भज दिया और स्वयं वहीं रह गया| अगले सुबह जैसे ही बहन अपने पिता के साथ वहां पहुंची उस बछड़े के साथ ही उसका भाई ही निश्चल हो चूका था देखते ही देखते वो दोनों ही अंतर्ध्यान हो गये| जैसे तैसे समय बीतता गया बहन सौतेली माँ के अत्याचार को किसी तरह सहते हुए बड़ी हुई|
फिर एक दिन एक बाहुबली काना क्ढोह (जो की एक आँख से अँधा था) के साथ उसकी शादी उसकी माँ ने जबरन तय कर दी| बहन शादी के लिए तैयार नहीं थी लेकिन भाई ने किसी तरह बहन को मनाया| भाई की काना क्ढोह से शर्त लगी लेकिन भाई उस शर्त को हार गया| अब काना बारात लेकर शिखर पर आ पहुंचा| लेकिन वो दुल्हन तो क्या उसकी काँया तक को साथ नहीं ले जा पाया चूँकि बहन ने एक किलोमीटर गावं कथाड़ की तरफ जाते हुए हुए ही एक 50 बीघे चौड़े खेत भ्युन्त्ल से डोली से ही छलांग लगा दी| अपनी दैवीय शक्ति से वो छलांग लगाते ही आधा मैदान अपने साथ घिन्नी घाड़ की तरफ गिरते हुए निचे चली गयी और एक किलोमीटर के बाद अंतर्ध्यान हो गयी और एक बान के वृक्ष के निचे भाभड़ घास और एक जलधारा के रूप में प्रकट हो गयी| यह जल धारा देवी नदी के रूप में विख्यात हो कर कई लोगों की प्यास बुझाते हुए हरियाणा में प्रवेश करती है|
बड़ा मेला:
लोगों के मन में उस दिन से इन भाई बहन के प्रति दिल में बहुत सम्मान आ गया| तभी से भाई बहन के प्रेम, उनके शिव लोक को जाने और दयावान बनने के लिए देवशक्ति आस्था रखने हेतु हर साल कार्तिक मास की शुक्लापक्ष में दिवाली के ठीक ग्याहरवें दिन एकादशी के दिन बड़ा मेला मनाया जाता है| इसमें पजेली गावं से ढोल नगाड़ों व पुजारियों सहित शोभा यात्रा का आरम्भ होता है तथा यह यात्रा भुर्शिंग महादेव के मन्दिर तक जाती है| रात्रि को भाई और बहन का अपूर्व इलन होता है और अगले दिन द्वादशी को मेला समाप्त हो जाता है|
लोगों के मन में उस दिन से इन भाई बहन के प्रति दिल में बहुत सम्मान आ गया| तभी से भाई बहन के प्रेम, उनके शिव लोक को जाने और दयावान बनने के लिए देवशक्ति आस्था रखने हेतु हर साल कार्तिक मास की शुक्लापक्ष में दिवाली के ठीक ग्याहरवें दिन एकादशी के दिन बड़ा मेला मनाया जाता है| इसमें पजेली गावं से ढोल नगाड़ों व पुजारियों सहित शोभा यात्रा का आरम्भ होता है तथा यह यात्रा भुर्शिंग महादेव के मन्दिर तक जाती है| रात्रि को भाई और बहन का अपूर्व इलन होता है और अगले दिन द्वादशी को मेला समाप्त हो जाता है|
रहस्मयी शिला:
जी हाँ इस मन्दिर के
पीछे एक विशाल शिला है जो कि हर किसी के लिए रहस्य का केंद्र है| इसके उपर
जाना का कोई भी सरल रास्ता नहीं है और न ही जा कर वापिस आना सरल कार्य है|
ऊपर से जो हवा यहाँ पर चली होती है वो और भी ज्याद डराती है खड़े तक होने
में भी डर लगता है| शरीर कांप उठता है| उस शिला पर श्रद्धालु घी चढ़ाते है
सिक्के फेंकते हैं और साथ में अन्य चढ़ावे जो कुछ भी वो लेकर आते हैं| उस
शिला की ढलान एकदम तीखी ऐसे लगता है जैसे नीचे खाई स्वयं आवाजें लगा लगा कर
आपने पास बुला रही है| और उस पर महादेव का गुर छलांग लगा कर रात के समय
जाता है और अपना खेल करता है जहाँ जाना और खड़े रहना एक असम्भव कार्य हो
वहाँ खेल दिखाने गजब का रहस्य जिसे हर कोई दैवीय शक्ति व ईश्वरीय कृपा से
ही जोड़ता है|
व्यवस्था:
मेले के दौरान खाने पीने की पूरी व्यवस्था रहती है| जगह जगह श्रधालुओं द्वारा लंगरों का आयोजन किया गया होता है| इसके अतिरिक्त भी अगर कोई यहाँ आना चाहे तो अपने साथ खाने का सामान ला सकता है बस सफाई का ध्यान रखे| ठहरने के लिएऊपर मन्दिर में तो कोई खास प्रबंध नहीं है लेकिन आप नैना टिक्कर मन स्थित वन विभाग के विश्राम गृह या सराहां (9 किलोमीटर) में किसी होटल में रुक सकते हैं| वैसे तो मेले के दौरान इस जगह को देखना सबसे ठीक है लेकिन इसके अतिरिक्त भी आप गर्मियों में यहाँ कभी भी आकर आनन्दित हो सकते हैं| पर्यटकों के लिए यह एक स्वर्ग है जहाँ आने का अवसर वो कतई नहीं छोड़ते| यहाँ हर समय पर्यटक आते हुए देखे जा सकते हैं|
मेले के दौरान खाने पीने की पूरी व्यवस्था रहती है| जगह जगह श्रधालुओं द्वारा लंगरों का आयोजन किया गया होता है| इसके अतिरिक्त भी अगर कोई यहाँ आना चाहे तो अपने साथ खाने का सामान ला सकता है बस सफाई का ध्यान रखे| ठहरने के लिएऊपर मन्दिर में तो कोई खास प्रबंध नहीं है लेकिन आप नैना टिक्कर मन स्थित वन विभाग के विश्राम गृह या सराहां (9 किलोमीटर) में किसी होटल में रुक सकते हैं| वैसे तो मेले के दौरान इस जगह को देखना सबसे ठीक है लेकिन इसके अतिरिक्त भी आप गर्मियों में यहाँ कभी भी आकर आनन्दित हो सकते हैं| पर्यटकों के लिए यह एक स्वर्ग है जहाँ आने का अवसर वो कतई नहीं छोड़ते| यहाँ हर समय पर्यटक आते हुए देखे जा सकते हैं|
मन्दिर का रख रखाव व देखभाल:
इस मन्दिर का रख रखाव व इसकी देखभाल का कार्य इसकी समिति करती है इस समिति के द्वारा यहाँ बहुत से विकासात्मक कार्य किये गये हैं जिन्हें प्रत्यक्ष तौर पर देखा भी जा सकता है| बस अगर मुख्य सडक से जो सम्पर्क मार्ग है वो किसी तरह पक्का हो जाये तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जायेगी| वैसे निकट भविष्य में ऐसा होने के भी आसार बनते नजर आ रहे हैं|
इस प्रकार भुर्शिंग महादेव जी के दर्शन की यह यात्रा सम्पन्न हो जाती है| जिन्दगी में एक न एक बार जरुर इस जगह पर जाना चाहिए मुख्य सड़क से यह बहुत नजदीक है और यहाँ पर जो मन को शांति और आत्मा को सुकून मिलता है उसका वर्णन करना शब्दों में सम्भव नहीं हैं| मुझे इस रमणीक स्थान पर जाने का अवसर अध्यापक साथियों के साथ समूह में मिला| सब के साथ बातें करते हुए कैसे यह सफर कट गया कुछ पता नहीं चला और जब वापिस आने का समय हुआ तो आने का मन ही नहीं कर रहा था| ऐसा लग रहा था की मानो यह वक्त वहीं कुछ पलों के लिए थम जाये और हम कुछ क्षण प्रकृति माँ को निहार लें| फोटोग्राफी के शौकीन तो यहाँ जरुर एक बार आयें और अगर मौसम आपके साथ हुआ तो आप को जरुर कुछ न कुछ अपने कैमरे के लिए अद्वितीय मिलेगा ऐसा मेरा मानना है|
इस मन्दिर का रख रखाव व इसकी देखभाल का कार्य इसकी समिति करती है इस समिति के द्वारा यहाँ बहुत से विकासात्मक कार्य किये गये हैं जिन्हें प्रत्यक्ष तौर पर देखा भी जा सकता है| बस अगर मुख्य सडक से जो सम्पर्क मार्ग है वो किसी तरह पक्का हो जाये तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जायेगी| वैसे निकट भविष्य में ऐसा होने के भी आसार बनते नजर आ रहे हैं|
इस प्रकार भुर्शिंग महादेव जी के दर्शन की यह यात्रा सम्पन्न हो जाती है| जिन्दगी में एक न एक बार जरुर इस जगह पर जाना चाहिए मुख्य सड़क से यह बहुत नजदीक है और यहाँ पर जो मन को शांति और आत्मा को सुकून मिलता है उसका वर्णन करना शब्दों में सम्भव नहीं हैं| मुझे इस रमणीक स्थान पर जाने का अवसर अध्यापक साथियों के साथ समूह में मिला| सब के साथ बातें करते हुए कैसे यह सफर कट गया कुछ पता नहीं चला और जब वापिस आने का समय हुआ तो आने का मन ही नहीं कर रहा था| ऐसा लग रहा था की मानो यह वक्त वहीं कुछ पलों के लिए थम जाये और हम कुछ क्षण प्रकृति माँ को निहार लें| फोटोग्राफी के शौकीन तो यहाँ जरुर एक बार आयें और अगर मौसम आपके साथ हुआ तो आप को जरुर कुछ न कुछ अपने कैमरे के लिए अद्वितीय मिलेगा ऐसा मेरा मानना है|
युद्धवीर टंडन
(कनिष्ठ आधारभूत शिक्षक रा. प्रा. पा. अनोगा)
गावं तेलका जिला चम्बा हि. प्र.
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